बरसों
बाद कोई फिर
से टकराया
आखें
जो मिली तो
दिल सकपकाया
रोम
रोम था तिलमिलाया
बरसो
बाद कोई फिर
से टकराया
इक
पल के लिए
दुनिया
जैसे
थम सी गई
थी
वो
यादों की छन्नी
में
छन
सी गई थी
वो
मोहल्ले की गलियाँ
वो
कोने का मंदिर
दशहरे
का मेला हो
या
होली की महफिल
हर
मौके को मिलने
का जरिया बनाना
वो
सुनना सुनाना
वो
रूठना मनाना
वो
चुपके से दिल
ने
था
क्या क्या दिखाया
इक
पल के दरमियाँ
में
था
जीवन समाया।।
बरसों
बाद कोई फिर
से टकराया
जज्बातों
की बाढ़ थी
दिल में
लफ़्ज़ों
का अकाल था
दुनिया
भर की खबर
ली उनसे
पूछा
उनका न हाल
था
छिपतीं
आखें, मिलती आखें
नजरों
का क्या बवाल
था
नमस्ते
करें या हाथ
मिलाएं
दिल
में यही सवाल
था
बातें
तो हुई दो
चार
पर
कुछ समझ में
न आया
दिल
तो यही कह
रहा था कि - ' रुक जाओ'
पर
जबां से 'फिर
मिलेंगे' ही निकल
पाया।।