Showing posts with label Hindi Nagme. Show all posts
Showing posts with label Hindi Nagme. Show all posts

Monday, June 1, 2015

व्यंग कहो या कविता ~ जब रोज चवन्नी कमाने वाले को अठन्नी मिलने लग जाती है!


नीयतें, नसीहतें सब बदल जाती हैं 
जब रोज चवन्नी कमाने वाले को
अठन्नी मिलने लग जाती है
चावल की माड़ को दूध समझ के पीते थे पहले
अब रोज खाने के बाद खीर की लत लग जाती है

जब रोज चवन्नी कमाने वाले को
अठन्नी मिलने लग जाती है!!

कभी मीलों पैदल जाया करते थे  
चंद पैसे बचाने के लिए 
थकान और पसीने को यूं ही पी जाया करते थे
वो आलम भी आया जब डॉक्टर ने बोला
शर्मा जी ट्रेडमिल ले लो स्वास्थ बचने के लिए
कल चवन्नी के लिए भागने वाले को
अठन्नी खर्च करके भागने की नौबत आ जाती है

जब रोज चवन्नी कमाने वाले को
अठन्नी मिलने लग जाती है!!

कल की चाहतें आज की जरूरतें बन जाती हैं
जब रोज पसीना बहाने वाले को
ऑफिस के एयरकंडीशनर की लत लग जाती है
कल तक ट्रेन का सफर बड़े शौक से करते थे मियाँ
जेब भारी होते ही हवाई जहाज
में उड़ने की आदत लग जाती है

जब रोज चवन्नी कमाने वाले को 
अठन्नी मिलने लग जाती है!!

कल तक झाड़ू पोछा भी
खुद से करते थे अपने घर का
वो आलम है आया कि
शर्मा जी महफ़िल में बोले
कि अगर बाई न आये तो
खाना बाहर से मांगने की नौबत आ जाती है

जब रोज चवन्नी कमाने वाले को
अठन्नी मिलने लग जाती है!!


Image source ~ Click Here

Monday, May 11, 2015

मेरा गम कितना कम है ~ the irony of life!!



कल रात के मनमुटाव के बाद
दिल के जख्म और गहरे हो गए
जब सवेरे उठा और छज्जे से देखा
की सारी दुनिया कितनी खुश है

इधर उधर चहलकदमी करते 
वो खिलखिलाते हुए बच्चे 
पीपल के नीचे बैठक जमाये 
बुजुर्गों के चेहरे पर वो चमक 
कुँए के पास औरतों का वो झुंड
गपशप की आवाज 
मेरे  चबूतरे तक रही थी
शर्मा जी का लड़का पारले जी का पैकेट लिए
गली के कुत्तों के साथ खेल रहा था
कम्बखत जानवर भी इतने खुश थे

तभी दूध वाला गया और हमने पूछा
और भैया क्या हाल चाल
कहने लगा बहुत खुश है
और मिठाई का डब्बा आगे कर दिया
कल ही उसकी लड़की हुई थी
रसगुल्ले को मुंह में दबाये 
हम चाशनी का मजा ले ही रहे थे
क़ि बगल से चिल्लाने की आवाज आई 
शायद चाची के रोने की आवाज थी
और खबर मिली कि पड़ोस के
रहीम चाचा गुजर गए
चालीस के थे, दो छोटे छोटे बच्चे भी थे उनके
दिल भर आया, दुःख हुआ 
और थोड़ी तसल्ली भी!!

Click here for Photo credit

PS: Did you also find yourself in such situation before?

Saturday, April 25, 2015

S ~ सूनी सूनी रातें हैं!!


सूनी सूनी रातें हैं
बरसातें सूखी सूखी सी
नामुमकिन मुलाकातें हैं
नज़रें भूखी भूखी सी

सूरज जो आये, रौशनी ना लए
चंदा भी अब तो, गर्मी बढ़ाये
चिड़िया की ची ची
कबूतर गुटरगूं
हमको तो आजकल कुछ भी ना भाये

रंग रसिया अब तो जा रे
रंग रसिया और ना सता!!!

सूनी सूनी राहें हैं
शामें रूठी रूठी सी
खाली खाली बाहें हैं
मुस्कानें झूठी झूठी सी

सावन जो आये, मुझको नहीं भाये
पनघट की रौनक, रास नहीं आये
सहेलियों की चाहत
अब्बा की आहत
हमको तो आजकल कुछ भी ना भाये

रंग रसिया अब तो जा रे
रंग रसिया और ना सता!!!

Author's Note: Busy schedule has kept me behind by 3 letters again for A-to-Z Challenge. This is a Hindi Poem about a girl waiting for her love. 

Wednesday, April 8, 2015

G for - गुड़िया थी वो मेरी ~ 7th day for A-to-Z Challenge


गुड़िया थी वो मेरी
नन्हीं मुन्ही प्यारी प्यारी
जैसे घर पहुचता था मैं
रोती कह के गाड़ी गाड़ी
चक्कर जो देता मैं उसको
बन जाती फुलवारी वारी
शेव जभी बनाता था मैं
कहती मेरी बारी बारी
सबसे कहती है पापा की
लाडी लाडी लाडी लाडी

पर ऊपर वाले ने कोई
चक्कर और बनाया था
नन्ही मुन्ही सी बच्ची के
दिल में छेद बिठाया था
छह साल की थी मेरी बच्ची
जब ईश्वर ने उसे बुलाया था
कल तक जिस घर में किलकारी थी
अब शमशान समाया था!!!

Monday, February 23, 2015

क्या है ये सच?




क्या ये सिर्फ एक अनुभव है
या एक अंतरमन का अहसास
क्या ये जीवन की पहेली है
या जिंदगी का सार

वास्तविकता से परे
काल्पनिकता से दूर
मिथ्या जैसा धूसर
कहानी जैसा रोचक
कभी काला
कभी सफ़ेद
कभी स्पष्ट
तो कभी ओझल
कल विश्वास
आज अन्धविश्वास
तेरा मेरा
रात सवेरा

किसका, क्या और कहाँ है ये सच?

Friday, November 21, 2014

The reluctant lover - तो कितना अच्छा होता!!


छुपा के सीने में इस दर्द को
हम जी सकते अगर तो कितना अच्छा होता
भुलाकर तुम्हें आगे देखकर
हम जी सकते अगर तो कितना अच्छा होता!

भूली बिसरी बन जातीं वो यादें
बन सकतीं अगर तो कितना अच्छा होता
पाकर के भी जिन्हें हम पा सके वो लम्हे
गर मिल जाते हमें तो कितना अच्छा होता!

वो कश्मकश आवाज जिसे सुनने को हम पागल थे
सुन सकते अगर फिर से तो कितना अच्छा होता
मदभरी सी वो आखें जिनमें थे सैलाब बड़े बड़े
गर डूब जाते हम उसमें तो कितना अच्छा होता!

जैसे आज हमें वो याद नहीं करते
हम भी भूल जाते उन्हें तो कितना अच्छा होता
पाकर के वफ़ा किसी दूजे की
हम भी बेवफा हो जाते तो कितना अच्छा होता!!

PS: The special thing about this poem is that I wrote it when I may be 17-18 year old and didn't know that I could write. Found it in an old journal yesterday and now publishing it on e-world.