ज़िंदगी है सबके पास
जी रहे हैं कुछ,
बाकी मौत के प्याले में
पी रहें हैं दुख,
अब तू ही बता ऐ परवरदिगार
ये जिंदगी क्यूँ देता है?
है डोर तो तेरे हाथों मे
इंसान तो बस अभिनेता है I
जब निर्देशक एक ही है
तो हर कहानी हिट क्यूँ नहीं होती,
क्या अब तेरे दरबार मे भी
पैसे के बदले किस्मत बंटती!!
Lovely poem, Hemant :)
ReplyDeleteThanks Diwakar....where are u missing these days!!
ReplyDeleteReminds of my Shakespeare. Profound work Hemant.
ReplyDeleteSaru di - That's a huge compliment for the one who writes random stuff!! but thanks a ton..I am obliged.
ReplyDelete