Monday, March 25, 2013

ऊपर वाले की काला बाज़ारी!!


ज़िंदगी है सबके पास
जी रहे हैं कुछ,
बाकी मौत के प्याले में
पी रहें हैं दुख,
अब तू ही बता ऐ परवरदिगार
ये जिंदगी क्यूँ देता है?
है डोर तो तेरे हाथों मे
इंसान तो बस अभिनेता है I
जब निर्देशक एक ही है
तो हर कहानी हिट क्यूँ नहीं होती,
क्या अब तेरे दरबार मे भी
पैसे के बदले किस्मत बंटती!!

4 comments:

  1. Thanks Diwakar....where are u missing these days!!

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  2. Reminds of my Shakespeare. Profound work Hemant.

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  3. Saru di - That's a huge compliment for the one who writes random stuff!! but thanks a ton..I am obliged.

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