सोचा लिखू आज, कुछ दोस्ती के बारे में,
लेकिन वो दोस्त तो वक़्त पर कभी काम ही न आया;
फिर सोचा सुनाऊ कहानी पडोसी की,
जिसने दगा देकर अपना काम बनाया;
लिखना चाहा बगल में बैठी लड़की के बारे में,
पर फिर वो बेदर्द तमाचा याद आया;
फिर सोचा लिख दू आज अपने बॉस के बारे में,
जिसने इस साल appraisal में अंगूठा दिखाया;
क्या करू, क्या लिखू आज, कुछ समझ न आया !!!
लेकिन वो दोस्त तो वक़्त पर कभी काम ही न आया;
फिर सोचा सुनाऊ कहानी पडोसी की,
जिसने दगा देकर अपना काम बनाया;
लिखना चाहा बगल में बैठी लड़की के बारे में,
पर फिर वो बेदर्द तमाचा याद आया;
फिर सोचा लिख दू आज अपने बॉस के बारे में,
जिसने इस साल appraisal में अंगूठा दिखाया;
क्या करू, क्या लिखू आज, कुछ समझ न आया !!!
बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
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