Wednesday, November 14, 2012

||| इस नाचीज़ को इंसान कहते हैं |||

हर चीज़ के पीछे. कारण चाहिए,
हर बीज बोने पर पौधा चाहिए;
खून के बदले खून,
और प्यार के बदले प्यार चाहिए,
इस नाचीज़ को इंसान कहते हैं।

पुण्य भी करता है तो, पाप मिटाने के लिए,
मदद ये करता है, तो एहसान चढ़ाने के लिए
दावा करता है कि है ये निस्वार्थ,
उस दावे के पीछे भी इसका स्वार्थ होता है;
इस नाचीज़ को इंसान कहते हैं।

मुंह में राम, बगल में छुरी
धरम के नाम पर ये करता बातें बड़ी बड़ी;
मीठा बोलता है सामने से,
पीछे से छुरा भोंक के जाता है;
इस नाचीज़ को इंसान कहते हैं,
इस हैवान को आज भी इंसान कहते हैं।

2 comments:

  1. Nice thought Hemant. I think you should now start writing in blank verse. Many people try free verse and you've got to be different!

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