जीवन होता कुछ और
गर सच्चाई का न होता साथ
याद अभी भी है मुझको वो पछतावे की रात
एक चालीस की आखिरी लोकल के इंतज़ार में
एक बेंच की दो छोर पकड़े बैठे थे दो लोग
खोये खोये
अपने मोबाइल से खेलने की अन्जान कोशिश
छिपी नहीं थी दोनों से
उनके जीवन का शायद वो सबसे लम्बा घंटा था
एक मीटर की दूरी शायद मीलों जितनी लम्बी थी
धीमा धीमा सन्नाटा वो
तेज़ हवाएँ सीने में
पता नहीं आगे क्या होगा
नशा बिना ही पीने में
ट्रेन आई और निकल गयी
तब दोनों इतने पास थे
आखों से आखें मिलने की देरी थी
कुछ देर पहले जो अनजाने थे
अब इक दूजे के ख़ास थे
शब्दों के उस खेल से दोनों
काफी दूर निकल आये
Hello/Hi की औपचारिकता
को दूर कहीं वो छोड़ आये
नाम पता ना पूछा इक दूजे का
शायद समय का अभाव था
बज रहा था दोनों के मन में
प्यार का कोई अलाप था
होंठ जभी जो पास आये तो
मुझको तभी ख्याल आया
जिनके लिए जी रहा हूँ जिंदगी
छल न उनसे कर पाऊंगा
इंतज़ार अभी वो करती मेरा
मुंह क्या उन्हें दिखाऊंगा
ऐसा सोचते सोचते मैंने
हाथ छुड़ाया और भागा
आधे घंटे बाद में मैंने
खुद को अपने घर पाया
रात के ढाई बजे भी उनको मेरा
खाने पर इंतज़ार था
गले लगने की देर थी मुझको
आखों में आसूं का भंडार था
सुनाई जो आपबीती मैंने उनको
मेरा गला तो भर आया
कितना प्यार था मुझको उनसे
मुझको तभी समझ आया
जीवन नरक बन जाता है
झूठ की कड़वाई से
कितना चैन होता है ना सच्चाई में!!
PS: This post is written to support #KitnaChainHotaHaiNaSachhaiMe campaign posted @Indiblogger. Enclosed is the heart touching video by Kinley.
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