Monday, June 1, 2015

व्यंग कहो या कविता ~ जब रोज चवन्नी कमाने वाले को अठन्नी मिलने लग जाती है!


नीयतें, नसीहतें सब बदल जाती हैं 
जब रोज चवन्नी कमाने वाले को
अठन्नी मिलने लग जाती है
चावल की माड़ को दूध समझ के पीते थे पहले
अब रोज खाने के बाद खीर की लत लग जाती है

जब रोज चवन्नी कमाने वाले को
अठन्नी मिलने लग जाती है!!

कभी मीलों पैदल जाया करते थे  
चंद पैसे बचाने के लिए 
थकान और पसीने को यूं ही पी जाया करते थे
वो आलम भी आया जब डॉक्टर ने बोला
शर्मा जी ट्रेडमिल ले लो स्वास्थ बचने के लिए
कल चवन्नी के लिए भागने वाले को
अठन्नी खर्च करके भागने की नौबत आ जाती है

जब रोज चवन्नी कमाने वाले को
अठन्नी मिलने लग जाती है!!

कल की चाहतें आज की जरूरतें बन जाती हैं
जब रोज पसीना बहाने वाले को
ऑफिस के एयरकंडीशनर की लत लग जाती है
कल तक ट्रेन का सफर बड़े शौक से करते थे मियाँ
जेब भारी होते ही हवाई जहाज
में उड़ने की आदत लग जाती है

जब रोज चवन्नी कमाने वाले को 
अठन्नी मिलने लग जाती है!!

कल तक झाड़ू पोछा भी
खुद से करते थे अपने घर का
वो आलम है आया कि
शर्मा जी महफ़िल में बोले
कि अगर बाई न आये तो
खाना बाहर से मांगने की नौबत आ जाती है

जब रोज चवन्नी कमाने वाले को
अठन्नी मिलने लग जाती है!!


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4 comments:

  1. Haan bhai,aisa hi hai.
    Dil khush hua aap ki kavita padh kar.

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    Replies
    1. Welcome to the blog Indu!!
      Khushi hui ki aapko kavita pasand aai!!

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  2. Hahaha, khoob...aisa hi hota hai bhai. bahut badhiya

    ReplyDelete

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